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ख़ूनी नदी की यात्रा / कुमार विकल

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इस ख़तरनाक यात्रा से पहले

आओ !

हम अपनी पिछली सभी यात्राओं को भूल जाएँ.

भूल जाएँ

उन साँवली या गोरी नदियों के नाम

जिनमें बहते हुए जलदीप

हमारी कविताओं में जगमगाते हैं.

और उन सभी गीतों को

गुनगुनाना छोड़ दें

जो हमने शांत नदियों की यात्राओं के दौरान

घर लौटते जल-पक्षियों से सीखे थे.


इस बार तो एक ख़ूनी नदी की यात्रा है

जिसमे कभी किसी ने कोई

घर लौटता जल-पक्षी नहीं देखा.


साथियो !

अपनी नौकाओं को तैयार कर लो

और अपनी सुरक्षा के हथियारों को

नौकाओं में ठीक से धर लो

और इस खूंखार नदी में उतरने से पहले

अपनी जेबों में कविताओं की जगह

सामरिक युक्तियाँ भर लो.

हाँ मैं, मैं ठीक कहता हूँ

बिफरी हुई खूंखार नदी का अंध वेग

एक फौजी शासन की ताकत के समान होता है.

कविताएँ तो केवल शांत नदियों को बांध सकती हैं

खूनी नदियों को बाँधने के लिए

युक्तियों की ज़रूरत है.


साथियो !

इस नदी को बाँधने के लिए,

हम इसके मुहाने तक पहुँचेंगे

और उस चट्टान को बारूद से उड़ा देंगे

जिसमें से इसकी पहली धारा निकलती है.


किंतु यह कोई ज़रूरी नहीं कि हम—

पहली बार ही उस चट्टान तक पहुँच जाएँगे

या नदी के नरभक्षी जलचरों से

बच के निकल पाएँगे

या अपनी टूटी नौकाओं के साथ

अँधेरे घरों में टिमटिमाती लालटेनों के पास

कभी लौट भी आएँगे.


खूनी नदी की यात्रा में

कभी किसी ने कोई

घर लौटता जल-पक्षी नहीं देखा.