ज़िन्दगी को मनाओगे कब तक
और फ़रेब इससे खाओगे कब तक
आह तक भी न लाओगे लब पर
दिन-ब-दिन ग़म उठाओगे कब तक
हो न हो चाहे कोई पुरता' बीर
ख़्वाब कितने सजाओगे कब तक
कोई तो मुतअसिर भी कर पाये
जल्वे क्या, क्या दिखाओगे कब तक
चेह्ररा है दिल का आइना 'दरवेश'
किससे क्या, क्या छुपाओगे कब तक