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शिक्षा के भिन्न-भिन्न आईने / राजकिशोर सिंह

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शिक्षा न रोटी की ऽोज है
न शौक कोई पहलू
न अहंकार की तलाश
और न ही जीवन का अवकाश
यह है प्रेम का प्रकल्प
अनुशासन का साध्य
मोक्ष का ठिकाना है
ज्ञान का तराना है
शिक्षा मिलती थी जब आश्रम में
तब द्योतक होती थी समता की
समाज समन्वय की चाह की
भूऽ थी यह सच्ची राह की
हुआ जब इसका सरकारी करण
तब यह लिपिकों की कुर्सी हुई
जूता हुआ यह चांदी का
क्रांति बनी यह गांध्ी की
यह साध्ना है सच्चाई की
और मानसिक दृढ़ता की
शांती के स्वरुपों की
अमरत्व के असली रुपों की
यह उमंग है मन ज्योतियों की
मानस पटलों की आभा की


ध्ैर्य की सीमा की
विद्वानों की गरिमा की
यह विद्या है सद्गुण साहसों की
पौरुष प्रतिभा प्रीति प्राणों की
प्रभुता पालन और क्षमता की
सम्प्रति समाज की एकरुपता की
यह कसौटी है अपराधें की क्षमा की
दीन-दुऽियों की द्रवित करुणा की
भगवानों के सम्मुऽ भत्तिफ की
प्रसाद मिली शत्तिफ की।