Last modified on 7 दिसम्बर 2019, at 18:42

रुठा लगता है / राजकिशोर सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन-तन से रुठा लगता है
कण-कण सा टूटा लगता है

तन से मन का मन से तन का
हर रिश्ता झूठा लगता है

तन तंबू से मन का रिश्ता
जाने क्यों छूटा लगता है

मन कहता है तन है ताजा
स्वाद सभी झूठा लगता है

बाहर से यह एक वरण है
अंदर से पफूटा लगता है

मन से तन का हाल न पूछो
हर हाल अनूठा लगता है

मन की हर महपिफल में यारो
तन काला-कलूटा लगता है।