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माँ / एस. मनोज
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सुख दुख में एक आस तुम्हीं थी
मां मेरा विश्वास तुम्हीं थी
असह्य वेदना के भी क्षण में
कलुष नहीं उपजे थे मन में
तुमने ही सद्ज्ञान सिखाया
कर्मयोग का पाठ पढ़ाया
ज्योति पुंज संसार तुम्हीं थी
हर सुख का आधार तुम्हीं थी
तुम ही मरियम, तुम ही सीता
हम सब की रामायण गीता
तुम से ही सुरभित फुलवारी
पुष्प चमकते क्यारी क्यारी
हर क्यारी की जड़ में माँ है
सुरभित होता सकल जहां है
तुमको समिधा में प्रतिवेदित
अश्रुपूर्ण है नमन निवेदित