भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादी हमसे रूठ न जाना / पूनम गुजरानी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 10 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम गुजरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी हमसे रूठ न जाना
हमको आता नहीं मनाना
आज कहानी कहते कहते
मीठे-मीठे गीत सुनाना।

चंदा मामा दिखलाकर के
हमें खिलाती हलवा पूङी
त्यौहारों पर लगा के टिका
पहना देती पायल चूङी
बाँध कमर पर चाबी अपने
बोलो रखती कहाँ खजाना
दादी हमसे रूठ न जाना
हमको आता नहीं मनाना।

चूहा, बिल्ली, तौता, मैना
किस्से कई सुनाती दादी
हम सोने का नाटक करते
फिर भी लोरी गाती दादी
जग में कौन जानता बोलो
 हमको दादी-सा बहलाना
दादी हमसे रूठ न जाना
हमको आता नहीं मनाना।

माला, पूजा, ध्यान, जाप में,
व्यतीत समय को वह करती
जीवन की पोथी में देखो
सदगुण मोती रहती भरती
तेरे ईश कहाँ पर रहते
तुम हमको भी तो बतलाना
दादी हमसे रूठ न जाना
हमको आता नहीं मनाना।