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झूठी बातों से बहलाकर लौट गया / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

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झूठी बातों से बहलाकर लौट गया
सुख तो आधे रस्ते आकर लौट गया

प्यार उमड़कर पत्थरदिल तक आया, फिर
दीवारों से सर टकरा कर लौट गया

एक फ़रिश्ता आया जी बहलाने को
दुनिया के ग़म से घबराकर लौट गया

ढूँढ़ रहे थे हम बेख़ुद होकर जिसको
वो ऊँची आवाज़ लगाकर लौट गया

यादों का इक ज्वार उठा था सीने में
माज़ी के कुछ नक़्श बनाकर लौट गया

एक तसव्वुर उसके जैसा आया कल
कुछ पल ठहरा फिर इठला कर लौट गया