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तुम कैसे हो दुनियादारी कैसी है / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’
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तुम कैसे हो दुनियादारी कैसी है
पाकीज़ा सी प्रीत हमारी कैसी है
सागर से इक बूँद उछलकर बिछड़ी थी
फिर से मिलने की तैयारी कैसी है
इससे लेकर उसको देते रहते हो
फिर भी अब तक शेष उधारी कैसी है
बनते बनते बात बिगड़ती है हर रोज़
क़िस्मत भी क़िस्मत की मारी कैसी है
जिसने तुमको सब अपनों से दूर किया
सच कहने की वो बीमारी कैसी है