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प्रहरी / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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उठ जाग हिमालय... पौरुषता
तेरी कहाँ खो गई है...?
ललकार रही तुझे हिन्द तेरी
तू कैसा प्रहरी है...?
अरे तू कैसा प्रहरी है...?

सौगंध लिया कैलाश का था
तू हिन्द की रक्षा करे सदा
फिर तेरे इस भाल दिखे
क्यूँ चिन्ता गहरी है...
अरे तू कैसा प्रहरी है...?

ऐ गिरिवर तुझ सा श्रेष्ठ नहीं
इस धरती पर कोई और कहीं
तेरे उन्नत शिखर पे शत्रु की
क्यूँ नजरें ठहरी हैं...
अरे तू कैसा प्रहरी है...?

कोई छीन गया है दिव्य मुकुट
कैलाश की आस भी रही टूट
उस मानसरोवर के हंसा की
चिंता गहरी है...
अरे तू कैसा प्रहरी है..?

तेरे आलिंगन गंगा अविरल
बन जाती मिल औषधीय जल
बारुद से हो रही खनिज विषैली
विपत्ति घनेरी है...
अरे तू कैसा प्रहरी है...?

हुंकार लगा... फुफकार दे तू
नरसिंहा का अवतार ले तू
हो प्रकट धीर, शत्रु को चीर
ज्योतिर्मय, कह रही है...
अरे तू कैसा प्रहरी है...?