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रोटी खाने का जमाना नहीं है / राजकिशोर सिंह

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था एक जमाना
लोग जब ऽाते थे चुनचुन कर
एक एक दाना
भूऽ मिटाने के लिए
तृप्ति पाने के लिए
पिफर आया एक
दूसरा नया जमाना
जहाँ थाल भरे पड़े हैं
सुन्दर-सुन्दर दाने
लोग उससे चुनकर ऽाते हैं
दो चार ही दाने
क्योंकि
भूऽ मिटती नहीं है अब ऽाने से
तृप्ति मिटती नहीं है दाने से
भूऽ का पैमाना अब दाना नहीं है
भोजन अब रोटी नहीं
हीरा जवाहरात सोना है
इसे पाने के लिए
जीवन-भर रोना है।