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विश्वास / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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विपत्तियाँ अनेकों हों
पर हौंसलों का साथ हो
बिखरे हुए हों लाख पर
एक निश्चयी विश्वास हो....

कई खोढ़रें वट वृक्ष में
पर युगों आक्षादित रहे
उन रिक्तियों में उमंग भर
स्वचित्त आह्लादित करे....

कई विसंगतियाँ स्नेह की
अपंग मन करता रहे
पर मनोबल बांह थामे
पीड़ सब हरता रहे....

कई मोतियाँ बिखरी पड़ी
पर स्नेह धागा सख्त हो
प्रतिकूल हों परिवेश भी
पर भाव न विभक्त हो....

यही प्रीत की शक्ति विपुल
यौगिक बने दो प्राण जब
भौतिक तत्वों के विरुद्ध
कसे भावनाएँ कमान तब....