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उग रही है घास / अवधेश कुमार
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उग रही है घास
मौक़ा है जहाँ
चुपचाप
जहाँ मिट्टी में जरा-सी जान है
जहाँ पानी का जरा-सा नाम है
जहाँ इच्छा है जरा-सी धूप में
हवा का भी बस जरा-सा काम
बन रहा आवास
मौक़ा है जहाँ
चुपचाप
पेड़-सी ऊँची नहीं ये बात है
एक तिनका है बहुत छोटा
बाढ़ में सब जल सहित उखड़े
एक तिनका ये नहीं टूटा
पल रहा विश्वास
मौक़ा है जहाँ
चुपचाप