Last modified on 18 दिसम्बर 2019, at 22:44

उग रही है घास / अवधेश कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 18 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उग रही है घास
      मौक़ा है जहाँ
               चुपचाप

जहाँ मिट्टी में जरा-सी जान है
जहाँ पानी का जरा-सा नाम है
जहाँ इच्छा है जरा-सी धूप में
हवा का भी बस जरा-सा काम

बन रहा आवास
     मौक़ा है जहाँ
               चुपचाप

पेड़-सी ऊँची नहीं ये बात है
एक तिनका है बहुत छोटा
बाढ़ में सब जल सहित उखड़े
एक तिनका ये नहीं टूटा

पल रहा विश्वास
     मौक़ा है जहाँ
               चुपचाप