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सभी राह जानी पहचानी / दीनानाथ सुमित्र

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सभी राह जानी पहचानी
जिस पर चाहूँ देता हूँ चल
 
सोते-सोते जग जाता हूँ
कभी न श्रम से कतराता हूँ
नहीं हार से मैं झुकता हूँ
मंजिल पर जा कर रुकता हूँ
श्रम से दीपक जाता है जल
सभी राह जानी पहचानी
जिस पर चाहूँ देता हूँ चल
 
जिससे मिलना है मिल जाना
सँग में रोना सँग में गाना
गा लेता हूँ रो लेता हूँ
गोद में जा के सो लेता हूँ
ओढ़ समस्याओं का आँचल
सभी राह जानी पहचानी
जिस पर चाहूँ देता हूँ चल
 
जीवन से आनन्द लिया है
लगभग उत्तम काम किया है
हानि-लाभ से मैं ऊपर हूँ
धरती पर छाया अंबर हूँ
मैं अपने खेतों का बादल
सभी राह जानी पहचानी
जिस पर चाहूँ देता हूँ चल