भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभी लोग और बाक़ी लोग / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:59, 26 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |संग्रह= }} सभी लोग बराबर हैं सभी लोग स्व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभी लोग बराबर हैं

सभी लोग स्वतंत्र हैं

सभी लोग हैं न्याय के हक़दार

सभी लोग इस धरती के हिस्सेदार हैं

बाक़ी लोग अपने घर जाएँ


सभी लोगों को आज़ादी है

दिन में, रात में आगे बढने की

ऐश में रहने की

तैश में आने की

सभी लोग रहते हैं सभी जगह

सभी लोग, सभी लोगों की मदद करते हैं

सभी लोगों को मिलता है सभी कुछ

सभी लोग अपने-अपने घरों में सुखी हैं

बाक़ी लोग दुखी हैं तो क्या सभी लोग मर जाएँ


ये देश सभी लोगों के लिये है

ये दुनिया सभी लोगों के लिये है

हम क्या करें अगर बाक़ी लोग हैं सभी लोगों से ज़्यादा

बाक़ी लोग अपने घर जाएँ।