भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा जीना / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनानाथ सुमित्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम ऐसे ही साथ निभाओ
है तुमसे ही मेरा जीना
माँग तुम्हारी रहे सिंदूरी
रहे कलाई चूड़ी पूरी
दो देहों में एक प्राण है
मुझमें - तुममें कैसी दूरी
नयन, नयन से रोज मिलाओ
है तुमसे ही मेरा जीना
तुम ऐसे ही साथ निभाओ
है तुमसे ही मेरा जीना
संग गुजारे रात-दिवस हम
रस बरसाते, रहे सरस हम
ताकत आती रही कहीं से
दिखें नहीं पल भर बेबस हम
और-और नित-नित बदराओ
है तुमसे ही मेरा जीना
तुम ऐसे ही साथ निभाओ
है तुमसे ही मेरा जीना
यह जीवन सुरसरि की धारा
गति न घटी जब कभी निहारा
साँस चलेगी जी धड़केगा
नहीं टूटना एक सितारा
गीत मिलन के हर पल गाओ
है तुमसे ही मेरा जीना
तुम ऐसे ही साथ निभाओ
है तुमसे ही मेरा जीना