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लड़ो उल्फत की खातिर (गीत) / दीनानाथ सुमित्र

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लड़ो उल्फत की खातिर, लड़ो ममता की खातिर
लड़ो रोटी की खातिर, लड़ो समता की खातिर
धरम की खातिर मत लड़, मत मर, यह तो बड़ा गुनाह है

दिखला सकते हो तो वह आकाश बांटकर दिखला दो
फूलों से फूलों का लड़ना, बूता हो तो सिखला दो
इंसा काट रहा इंसा को, छुपा कहाँ अल्लाह है

जिसने बाँटा मुल्क धरम के नाम न उसको पूजेंगे
मुल्क बांटना आज भी जिसका काम न उसको पूजेंगे
पूजेंगे उसको, दिल जिसका सागर अतल अथाह है

यह खुसरो का देश, यहाँ अब भी जिंदा रसखान है
ठुमरी बड़े गुलाम अली की भारत की पहचान है
हिंदू की गर्दन से लिपटी मुसलमान की बांह है

मंदिर मस्जिद इक आंगन में राम-रहीमा का घर है
दोनों सुघड़ पड़ोसी हैं तो इक दूजे को क्या डर है
एक जगह है जाना सबको अलग-अलग जो राह है