भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हार का ठहराव / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

सुर्ख लावा हो गए हैं पाँव
तपती रेत में

गाँव ने हैं कर्ज बोये
मौत की फसलें उगाईं
अंजुरी-भर प्यास तड़पीं
आस ने चीखें दबाईं

आज फिर सपने पड़े हैं
पाँव मोड़े पेट में

हाँक फिर वैसी लगी है
पक्ष बस प्रतिपक्ष में है
सत्य पर सब जानते हैं
स्वार्थ केवल अक्ष में हैं

शाकभक्षी फिर मरेंगे
समय है, आखेट में

चेतना, बदलाव क्या बस
ताज का बदलाव ही है
जीत कैसी, जीत है यह
हार का ठहराव ही है

देखना फिर उग न आएँ
नागफनियाँ खेत में