Last modified on 19 दिसम्बर 2019, at 18:13

निगाहें फेर कर मत जा / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश्वर प्रसाद सिंह |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निगाहंे फेर कर मत जा, ज़रा तुम पास भी तो आ।
मचलती हो ग़ज़ल जैसी, बुझाने प्यास भी तो आ।।

मुहब्बत में सदा तुम तो, मुझे ही भूल जाती हो।
करो नफरत नहीं इतनी, मिलाने सांस भी तो आ।।

निगाहों की लड़ाई में, सदा हम हार जाते हैं।
पराजित हूँ मगर फिर भी, बिछाने घास भी तो आ।।

कभी करवट बदलता हूँ, कभी मसलन दबाता हूँ।
जिगर में तीर-सी चुभती, मिटाने त्रास भी तो आ।।

बची अब रात आधी है, अभी तो बात बाकी है।
भरोसा है मुझे अब भी, जगाने आस भी तो आ।।

लगा कर सात फेरे तुम, निभाने की कसम खाई।
सियानी हो चली अब तो, रिझाने खास भी तो आ।।

उधर को तुम चली जातीं, इधर हम यूँ पड़े रहते।
तनिक आभास मिलते ही, खिसक आबास भी तो आ।।