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शिक्षक : कल और आज / राजकिशोर सिंह

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कहलाते हैं शिक्षक तब गुरु
जब ब्रह्म का रुप हुआ करते
शिव जैसा वचन देकर
विष्णु सा सृष्टि रचा करते

भारतीय शिक्षक कहलाते हैं अध्यापक
अंग्रेज कहलाते थे सर
काम करते पढ़ाने का
लेकिन होते थे मास्टर

हुआ जब निजी शिक्षकों का प्रचलन
मास्टर हुआ मस्सय
द्वारे-द्वारे नगरी-नगरी
शिक्षकों का यही है आशय

विद्यार्थी होते हैं तब शिष्य
जब शिक्षक होते है गुरु समान
होते हैं छात्रा जब स्टुडेंट
मास्टर का करते तब अपमान

मास्टर कहलाता तब मस्सय
जब सर को कोई ना ज्ञान
विषय वस्तु से दूर रहे
झूठे मन में शान

गुरु तो महर्षि धैम्य थे
जहाँ उपमन्यु-आरुणि अंतेवासी
गुरु हुए जब मुनि वशिष्ठ
तब दशरथ पुत्र हुए वनवासी

गुरु का स्थान जब रखे द्रोण
तब एकलव्य जैसा धनुर्धर हुआ
भेदकर श्वान मुख तीर से
द्वापर में धुरंधर हुआ

होते थे गुरु वैदिक काल में
मास्टर टीचर हाल में
सर की उपाधि अंग्रेज देते
अपनी कूटनीति चाल में

मित्रों ! गुरु कभी न मास्टर होगा
न मस्सय न सर
इसकी गरिमा ब्रह्म ही जाने
न पंडित न जर।