भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उर्वशी, रम्भा, मेनका / मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> उर्वश...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उर्वशि, रम्भा, मेनका, कभी न होती बूढ ।
यह रहस्य जानें नहीं, ज्ञानी और विमूढ़।
ज्ञानी और विमूढ़ , कौन सा क्रीम लगाती।
च्यवनप्राश या भस्म, न जाने क्या क्या खाती।
कह मुन्ना कविराय, बात यह लगे अचम्भा।
पुरुषों से यह राज, न कहती उर्वशि, रम्भा।।