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हमन है इश्क मस्ताना (ग़ज़ल) / दीनानाथ सुमित्र

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हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को इश्क़ से यारी
इसी को सर पे रक्खा है, नहीं यह फूल से भारी

जमाना जिस तरफ जाये, हमन क्यों उस तरफ जाये
हमन की राह अलबेली, हमन की राह है प्यारी

हमन इंसान है, इंसान की ही दोस्ती चाहे
बदरिया है, बरसता है, हमन का रंग खुद्दारी

समय का कबीरा कहिये, जलाकर घर जिया अब तक
न कोई है हमन जैसा, हमन से दूर मक्कारी

सुमित्तर भी हमन जैसा, बड़ा दिलदार मानुष है
रहा संसार से उबा, मगर लगता है संसारी