Last modified on 25 दिसम्बर 2019, at 18:51

शोहरतों में आप जैसे हम नहीं / हरि फ़ैज़ाबादी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शोहरतों में आप जैसे हम नहीं
वरना तारे चाँद से कुछ कम नहीं

लुत्फ़ ले लो ज़िंदगी में जब मिले
रोज़ मिलती चाँदनी, शबनम नहीं

फ़र्क़ मुझमें और तुझ में लाज़मी
पाँचों उँगली कीं ख़ुदा ने सम नहीं

कुछ तो होगी ही वजह वरना कभी
आँखें होती हैं किसी की नम नहीं

पूछना तो चाहिए उससे हमें
माना इससे दूर होता ग़म नहीं

घिर चुका है वो यक़ीनन ख़्वाब में
नींद आती है उसे एकदम नहीं

आज या कल टूटना ही है उसे
कोई भी रहता हमेशा भ्रम नहीं