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रात-दिन आह ही कमाते हैं / हरि फ़ैज़ाबादी

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रात-दिन आह ही कमाते हैं
आप बच्चों को क्या खिलाते हैं

भूल क्या आपसे नहीं होती
डाँट नौकर को जो पिलाते हैं

फ़िक्र अपनी करें हमें छोड़ें
हम जो कहते हैं वो निभाते हैं

साथ औरों का दें तो हम समझें
बोझ अपना तो सब उठाते हैं

दख़्ल मत दीजिए नमक-घी में
मर्द तो घर नहीं चलाते हैं

आपको शर्म क्यों नही आती
कंस को देवता बताते हैं

दिल भला कैसे वो मिलायेंगे
हाथ जो दूर से हिलाते हैं