भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर में सब सामान हो गया / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घर में सब सामान हो गया
तो क्या सब आसान हो गया
चारों धाम बचे तो कैसे
पूरा हर अरमान हो गया
पेड़ कटा है चबूतरे का
आँगन क्यों वीरान हो गया
मेरी मेहनत गयी नशे में
आज दान नुक़सान हो गया
चावल कितना महकेगा जब
एक माह में धान हो गया
नादानी की और किसी ने
दिल मेरा नादान हो गया
आख़िर किसने कहा आपसे
वापस मेरा बान हो गया