विद्यापति-महिमा / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’
चौपाई-
विद्यापति कवि रचना भारी,
जिनके नाम जपे त्रिपुरारी।
मिथिला के कवि वो भगवाना,
विद्यापति कविवर गुणखाना।
जन्म लिए कवि बिस्फी गामा,
मात - पिता हर्षित गृह धामा।
बर्ष आठ में लिख कर दोहा,
शिव सिंह का ह्रदय वो मोहा।
विद्यापति मनहर इक धामा,
जहाँ बहे नित गंग -ललामा।
विद्यापति गणपति के नंदन,
सकल जगत करता अभिनन्दन।
विद्यापति सबके उर सागर,
तीन लोक में हुए उजागर ।
गंगा, कमला, कोशी ,काशी,
ये सब विद्यापति के दासी।
राजा शिव के कवि दरबारी,
विद्यापति जग में गुणकारी।
जब शिव महिमा गीत सुनाया,
उगना बन शिव भू पर आया।
दिवस-मास-सालों जब बीता,
शिवांगी कैलाश पर रीता।
तब भवानी हो अति अधीरा,
भेजी क्रोध समीप सुधीरा।
क्रोधित हो विद्यापति दारा,
झाडू ले उगना को मारा।
तभी राज विद्यापति खोला,
ये शिव हैं पत्नी से बोला।
सुनते ही भागे कैलाशी,
रोती रही सुधीरा दासी।
विद्यापति विह्वल हो रोता,
कैसे चैन बिना शिव होता।
दोहा-
विद्यापति गुणगान से,
हर्षित सकल समाज।
कर जोड़ विनती करते,
हम सब कविगण आज।।