भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुआँ-धुआँ धरा-गगन / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना सिंह 'अंगवाणी बीहट' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बम बारूद का अगन,
बंदूक तोप का तपन,
मानव मन का जलन,
धुँआ धुँआ धरा गगन।
कार बाईक का चलन,
नव निर्माण का सृजन,
चाक चक्की का हनन,
धुँआ धुँआ धरा गगन।
कारखानों का अगन,
पेड़ पौधों का कटन,
जीव जन्तु का कफ़न,
धुँआ धुँआ धरा गगन।
धरती माता का खनन,
कटते वन का चंदन,
खोते जड़ी बूटी कुंदन,
धुँआ धुँआ धरा गगन।
काला धुँआ फैला गगन,
हुआ विषैला वातावरण,
साँस नहीं ले पाता मन,
धुँआ धुँआ धरा गगन।
चिमनियों से निकलता धुँआ,
इंसानों की जिंदगी का कुँआ,
जागो ,जागो , जागो इंसान,
धुँआ धुँआ धरा गगन।