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गूँज रहल बाँसुरी / सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण'
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नई किरण कि छाँव मेँ, आज गाँव-गाँव मेँ
देश के विकास पर, गूँज रहल बाँसुरी ।
भोली-भाली छोकरी, ले माथे पर गागरी
गा रहल मल्हार आउ गूँज रहल बाँसुरी ।
दूर के सुदूर के, झोपड़ी के मजूर के,
सजल-सजल प्रीत पर, गूँज रहल बाँसुरी ।
भीगल भीगल रातों मे, भादों के बरसात मेँ,
झिंगुरा से सुर मिला, गूँज रहल बाँसुरी ।
सकल अटल पीर पर, ढुलल-ढुलल नीर पर,
प्यार माय खुमार ले, गूँज रहल बाँसुरी ।
श्याम कूँज-कूँज मे वेदना के पुंज मे,
कोयलिया के तान पर, गूँज रहल बाँसुरी ।
आज प्राण-प्राण मेँ, उर्वरा विरान मे,
धेनुका ढकार पर, गूँज रहल बाँसुरी ।
राधिका सुहाग पर, कृष्ण फाग-फाग पर,
प्राण राग-राग मेँ, गूँज रहल बाँसुरी ।
खिलल कदम गुलाल से, लाल-लाल गाल से
मूर्छना विहार पा, गूँज रहल बाँसुरी ।