Last modified on 26 दिसम्बर 2019, at 23:01

साँसत में जिनगी / मुनेश्वर ‘शमन’

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:01, 26 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनेश्वर 'शमन' |अनुवादक= |संग्रह=सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँसत में पड़ल जिनगी गाँव में भी सहर में भी।
छींटा लहू के ताजा पथ पर भी डगर में भी।।

बढ़ले ही हियाँ जा हइ नित हादसा के जमघट।
रोकय के दम लखा नत्र, मनवाँ में कमर में भी।

जद्दोजहद हे जारी जीअय के लेल जिनकर।
बिरानी बसल उनकर जियरा में नजर में भी।।

जाय भी तो कहाँ मैनमन-रहियन में बाज बैठल।
अनहोनी के आसंका बहरो त• घर में भी।।

जहाँ सान के हे लहरा उहाँ दाग भरल गहरा।
अज़बे-गज़ब हे मउसम तासीरो- असर में भी।।

दिल हे कि दिनों-दिन ई, पथराल कते जाहे।
ऊ बात कहाँ अब तो गंभीर खबर में भी।।

आवल सताब्दी के मुहनमे पर त• देख•।
अइलय हे फरक अदमी, अदमी के कदर में भी।।