भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयकी सदी / मुनेश्वर ‘शमन’

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 26 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनेश्वर 'शमन' |अनुवादक= |संग्रह=सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थिर जल कंकरी के फेंकय।
मौन-मुग्ध फिन लहर के देखय।।

कइसन-केतना उथल-पुथल हे।
बेबस मछली हाय विकल हे।
हलचल के टूक असर के हेरय।।

घूरा सुलगल गाँव-सहर में।
धुइयाँ पसरल हे घर-घर में।
छलिया हाथ अलाव में सेंकय।।

टेढ़-मेढ़ अब जीवन के गति।
छल-परपंचे बनल नियति-मति।
अजब चाल हइ अदमी रेंगय।।

बड़ प्यासल जिनगी के नदी हे।
तातल-लहकल नयकी सदी हे।
लोग अपन अस्मिता के मेटय।।