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जीत हे ओकरे / मुनेश्वर ‘शमन’
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जीत हे ओकरे, जे दिलदारा।
भइया, परेम हे सबसे प्यारा।
नेह लगा के जान गेल दिल,
खोवय में पावय के सुख हे।
पावय के सब जतन मीत रे,
साथे-साथ रखे कुछ दु:ख हे।
पल-पल पावय के चिंता में,
बेरथ भटकय मन-बंजारा।।
हार हिया के दाँव, दर्प से-
साजल मन कोय जीत सके हे।
विमल पिरीत से निपट-निठुर भी,
सरधा-प्रेम लुटावय बालन के,
जसगान करय जग सारा।।
बेमतलब हइ आग उगलनइ,
कते अकारथ द्वेस के संचय। द्वेस
पावन प्रीत पुनीत नीति से,
बहुत पुरानी अप्पन परिचय।
हम सभ अपन अतीत से आवऽ
सीख करऽ भावी उजियारा।।
धूप-छाँह वाला रिस्ता में,
चलऽ-चलऽ फिन सुचिता घोलऽ ।
अदमी सब हिलमिल के जीए
मन-मन जुड़े, बैन मधु बोलऽ
आदमीयत के जहाँ वास हे,
ओहे गली में चलऽ दोबारा।।