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मातल बेआर / मुनेश्वर ‘शमन’
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फागुन महीना में आ गेल बहार,
चलय मातल बेआर।
दुम दबा के भागल जाड़ा बरियार,
चलय मातल बेआर।।
बाग-बगइचा सोभय मोहय फुलवारी।
तन-मन पर पसर गेल अजब-सन खुमारी।
केतना सोहान लगय नेमुआ-अनार,
चलय मातल बेआर।।
महुआ कोंचाल करय महमय अमरइया।
घर-घर में दमक उझल रहलऽ पुरबइया।
बजा रहल झुनझुन्ना खेतवा-बधार,
चलय मातल बेआर।।
बदलल मिजाज लेके अइलइ ई मउसम।
खान-पान रहन-सहन में चाहय संजम।
जिनगी में खुसी लेल जियरा संभार,
चलय मातल बेआर।।