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आँखें रहते सूर हो गए / संजीव वर्मा ‘सलिल’
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आँखें रहते सूर हो गए
जब हम खुद से दूर हो गए
खुद से खुद की भेंट हुई तो-
जग-जीवन के नूर हो गए
सबलों के आगे झुकते सब
रब के आगे झुकता है नब
वहम अहम् का मिटा सकें तो-
मोह न पाते दुनिया के ढब
जब यह सत्य समझ में आया-
भ्रम-मरीचिका दूर हो गए
सुख में दुनिया लगी सगी है
दुःख में तनिक न प्रेम पगी है
खुली आँख तो रहो सुरक्षित-
बंद आँख तो ठगा-ठगी है
दिल पर लगी चोट तब जाना-
'सलिल' सस्वर सन्तूर हो गए