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अपने सपने / संजीव वर्मा ‘सलिल’

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अपने
सपने कर नीलाम
औरों के कुछ आएँ काम

तजें
अयोध्या अपने हित की
गहें राह चुप सबके हित की
लोक हितों की कैकेयी अनुकूल
न अब हो वाम

लोक-
नीति की रामदुलारी
परित्यक्ता जनमत की मारी
वैश्वीकरण रजक मतिहीन
बने-बिगाड़े काम

जनमत-
बेपेंदी का लोटा
सत्य-समझ का हरदम टोटा
मन न देखता देख रहा है
'सलिल' चमकता चाम...