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मैं और वो / आलोक कुमार मिश्रा
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मैंने कहा — आओ साथ बैठो
उसने कहा — तुम अपनी सुनाते रहो
इस तरह वो करती रही
कई काम
एक साथ ही तमाम ।
मैंने कहा — तुम्हें याद है वो दिन...
बात काटकर बोली —
आजकल भूल जाती हूँ सब
और सूखने को डाल दिया डोर पर
वही मेरा दिया रुमाल ।
मैं उठा, कहा — चलता हूँ
वह कुछ नहीं बोली
बस देखती रही
इस तरह
इस बार भी मैं
और थोड़ा सा
रह गया वहीं ।