चाँद मेरा / अंकिता कुलश्रेष्ठ
चाँद तुम तो देख सकते आसमां से हर नज़ारा
चाँद मेरा दूर मुझसे रो रहा है क्या, बताओ
देखकर बतलाओ मुझको क्या तुम्हें वो ताकता है
डूबकर फिर आँसुओं में रातभर वो जागता है
दो दिलासा तुम उसे कुछ हे निशाकर!प्रार्थना है
ज्योत्सना संग इन्दु शीतल, मन वचन से वंदना है
है बहुत निश्छल, सलोना ,प्रियतम प्राणों से प्यारा
मधु-मिलन की स्मृतियों में सो रहा है क्या, बताओ
तुम जरा उसको ये कह दो ,चाँदनी उसकी मिली है
सोलह श्रृंगार करके नवकुसुम सी वो खिली है
चूड़ियाँ, महावर,सितारों से सजी चूनर सजाए
हाथ मेंहदी मांग कुमकुम भाल पर बिंदिया लगाए
किसलिए फिर अनमना सा हो रहा है वो बिचारा
प्रीति पर विश्वास उसका खो रहा है क्या, बताओ
हाँ,उसे जाकर ये कहना क्यों उदासी किसलिए दुख
एक ही आकाश के नीचे तो दोनों जी रहे हैं
एक ही तो है धरा और एक जैसी ही पवन है
एक ही चंदा की अनुपम चाँदनी को पी रहे हैं
हैं अभी कुछ दूरियां पर प्रेम है अनुपम हमारा
प्रेम कोई बीज दुख के बो रहा है क्या, बताओ