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गृहिणी / शीला तिवारी
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मन का विस्तार
क्षितिज के उस पार
दृग सपनों के सागर
उर करुणा के गागर
जीवन कलियों सा बंद कपाट
सुख-दुःख की पंखुड़ी झूलती साथ
मन में पीड़ा का नर्तन
अधर पर मुस्कान के मकरनंद
मखमली सपने मानस-पटल पर सजे
रहती अधर अक्सर सिले हुए
न खुद की सुधि, न खुद की ज़िंदगी
वात्सल्यमयी सुधा बन बरस रही
व्यथा जीवन की कसमसाहट भरी
स्वयं यथास्थिति से जकड़ी रही