भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ! मैं कविता लिख देता हूँ! / अनुपम कुमार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 22 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपम कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
हाँ! मैं कविता लिख देता हूँ!
जब दिल में रखी कोई बात
बहुत दिनों के बाद
सुलगाने लगे मेरे जज़्बात
और दिल जलने लगता है
बात की धाह से
और उसकी बेचैन लपटें
मुंह को आने लगती हैं
और मुझे ज़ुबान खोलने में डर लगता है
अपनों के सामने
परायों के सामने
तब मैं दिल की भट्ठी से
अपनी जलती बातों को
कलम की चिमटी से
हौले से पकड़कर
उसे काग़ज़ की दरी पर
इत्मीनान से सुला देता हूँ
आराम से आराम के लिये
पर इसमें चिमटा गरम हो जाता है
दरी जल जाती है
और बात!
लाल से काली-उजली हो जाती है
पर दिल को ठंढक तो पड़ जाती है यार!