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स्नेह-सुधा-जल / महेन्द्र भटनागर

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स्नेह-सुधा-जल बरसा दूंगा, टूटी-फूटी दीवारों में !

मैं सुन्दर विश्व सजा दूंगा,
मैं सुखमय स्वर्ग बसा दूंगा,
जीवन-संगीत सुना दूंगा,
हृद्-पीड़क शत-शत बंधन में, जकड़े युग के प्राचीरों में !

नृत्य मनोहर रुनझुन-रुनझुन,
गुंजित कर संसृति का कण-कण,
प्राणों में भर जीवन-धड़कन,
सरगम का मधु-स्वर भर दूंगा काली-काली ज़ंजीरों में !

जन-उर में द्रोह उठा दूंगा,
यौवन का तेज जगा दूंगा,
उन्नति की राह बता दूंगा,
मूक अभावों के जीवन में, घोर निराशा में, हारों में !
1949