भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिड़कियाँ / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 24 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज कुमार |अनुवादक= |संग्रह=शब्द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सवाल सिर्फ खिड़कियों का नहीं
उनके खुले रहने का है!
खिड़की होने भर से
खिड़की नहीं हो जाती,
काल-कोठरियों में भी होती हैं
बंद रखी जाने के लिए खिड़कियाँ!
दीवारें जनम से सबके साथ हैं
सख्त से सख्ततर होती हुई
खिड़कियाँ
दीवारों को भेद कर ही सम्भव हैं!
ताजी हवा फेफड़ों के लिए
और संसार
सपनों की सेहत के लिए
जरूरी है!