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री हवा ! / महेन्द्र भटनागर

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री हवा !
गीत गाती आ,
सनसनाती आ ;
डालियाँ झकझोरती
रज को उड़ाती आ !

मोहक गंध से भर
प्राण पुरवैया
दूर उस पर्वत-शिखा से
कूदती आ जा !

ओ हवा !
उन्मादिनी यौवन भरी
नूतन हरी इन पत्तियों को
चूमती आ जा !

गुनगुनाती आ,
मेघ के टुकड़े लुटाती आ !

मत्त बेसुध मन
मत्त बेसुध तन !

खिलखिलाती, रसमयी,
जीवनमयी
उर-तार झंकृत
नृत्य करती आ !
री हवा !
1949