भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काला डांडा पीछ बाबा जी / गढ़वाली

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:38, 6 फ़रवरी 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

काला डांडा पीछ बाबा जी

काली च कुएड़ी

बाबाजी, एकुली मैं लगड़ी च ड..र

एकुली-एकुली मैं कनु कैकी जौलो


भावार्थ


--' काले पहाड़ के पीछे, पिताजी!

काला कुहरा छा रहा है ।

पिताजी, मुझे अकेले में डर लगता है ।

अकेले-अकेले मैं ससुराल कैसे जाऊंगी?'