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जीवन का अभिनय / महेन्द्र भटनागर
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संसार समझ कब पाया
मेरे जीवन का अभिनय !
मेरे जीवन की धरती पर
ऊबड़-खाबड़ पथ
सर-सरिता, गिरि-वन,
मैदान-पठार बने;
मरुथल, दलदल;
सुख-दुख का क्रम,
उत्थान-पतन
मुसकान-रुदन
है हार-विजय ?
मेरे जीवन के अम्बर में
आँधी झंझा,
हिम का वर्षण,
पानी की बूँदों की रिमझिम,
गर्जन-स्वर है, विद्युत कंपन ;
क्षण देदीप्य अमर सविता-चंदा जैसे,
उल्काएँ भी नश्वर !
सुन्दर और असुन्दर,
शिव और अशिव
भावों का संचय !
1945