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अपना शहर / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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ऐसा हो अपना शहर ...
स्वर्णिम सुबह रजत-सी रातें,
दिनभर करे सभी से बातें,
हरियाली के बिछें गंलीचे
शुद्ध हवा हो ऊपर नीचे
नहीं प्रदूषण का हो कहर। ऐसा हो...
क़ानूनों का उल्लंघन कर
शान्ति शहर की भंजकर,
राजनीति की आड़ में वादे
अनैतिक काम, झुठैले वादे,
मुझे शिकायत उन सबसे है
जो देते इन्हें लहर॥
ऐसा अपना शहर...
सभी रहें अनुशासित होकर
घर-बाजार, बगीचों में,
दण्ड उन्हें मिलना ही चाहिए
जो करे मिलावट चीजों में,
सावधान होकर है रहना,
जो फैलाते कोई जहर।
ऐसा हो अपना शहर...

आज के बच्चे कल के नागरिक,
उनको देश चलाना
शिक्षा, सृजनशीलता से ही
अब उनको आगे आना है,
सतत प्रगति पाठ पर बढ़ना है,
कहीं समय ना जाए ठहर।
ऐसा हो अपना शहर...