Last modified on 13 फ़रवरी 2020, at 19:23

उम्र की गणित / हरेराम बाजपेयी 'आश'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे पा है ही काया, तुम कमी की बात करते हो,
दो गज़ ज़मीन भी नहीं अपनी, तुम आसमां की बात करते हो।

घिरा हूँ भीड़ से फिर भी अकेला लग रहा हूँ,
दोस्त मुंह फेरे खड़े हैं, तुम दुश्मनों की बात करते हो।

जिन्हें अपना समझता हूँ, पराये उनसे बेहतर हैं,
भरोसा उठ गया खुद से, तुम जहाँ की बात करते हो।

वफा के नाम पर खुद को मिटा डाला "आश" ,
अंधेरा दिन में लगता है, जात की तुम बात करते हो।

लहू का घूंट यह जीवन अब जिया जाता नहीं,
हलक में कैद साँसे हैं तुम ज़िन्दगी की बात करते हो।

उम्र की कैसी गणित थे, ज्यों-ज्यों जुड़े त्यों-त्यों घाटे,
भाग टुकड़ों में बटा है, तुम गुणा की बात करते हो॥