Last modified on 13 फ़रवरी 2020, at 19:28

पत्र श्री / हरेराम बाजपेयी 'आश'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
प्यार का सागर सा,
पर कुछ ऐसे शब्द जिन्हें,
मैंने मोती माना,।
 यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...
यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
सुरभित उपवन सा,
पर कुछ ऐसे शब्द,
जिन्हें मैंने सरसिज माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...

यूं तो सारा पत्र तुम्हारा,
जीवन दर्शन सा,
पर कुछ ऐसे शब्द,
जिन्हें मैंने दर्पण माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...

यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
नई सुबह कियास सा,
पर कुछ ऐसे शब्द जिन्हें,
मैंने ज्योति माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...
यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
संगम सरिताओं का,
पर कुछ ऐसे शब्द,
जिन्हें मैंने कविता माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...

यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
एक कहानी सा,
पर कुछ ऐसे शब्द,
जिन्हें मैंने कविता माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा...

यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा,
प्यार का सागर सा,
पर कुछ ऐसे शब्द,
जिन्हें मैंने मोती माना। यूँ तो सारा पत्र तुम्हारा।