भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँधी के बन्दर / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय के अनुसार गाँधी के,
तीनों बंदर भी बादल गए,

अच्छा हुआ समय रहते संभल गए,
आखिर कहाँ तक आँख, कान-मुँह बन्द रखते,

और गाँधी के नाम पर,
महात्माओं सा कष्ट सहते।

अब वे भी नेताओं की तरह,
गाँधी समाधि पर जाते है,

सच्चाई, त्याग, देश सेवा की शपथ खाते है,
फिर कुर्सी के लिए,
यत्र-तत्र झपट्टा लगातेन हैं॥