समय के अनुसार गाँधी के,
तीनों बंदर भी बादल गए,
अच्छा हुआ समय रहते संभल गए,
आखिर कहाँ तक आँख, कान-मुँह बन्द रखते,
और गाँधी के नाम पर,
महात्माओं सा कष्ट सहते।
अब वे भी नेताओं की तरह,
गाँधी समाधि पर जाते है,
सच्चाई, त्याग, देश सेवा की शपथ खाते है,
फिर कुर्सी के लिए,
यत्र-तत्र झपट्टा लगातेन हैं॥