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समय को शब्द दो / हरेराम बाजपेयी 'आश'
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ऊषा जब सूरज के संग हिरन हुई
बादल बहके कविता में सुबह हुई,
प्रकृती के गात गात में महकी ऋतुगंध,
समय को शब्द दे लेखनी अमर हुई।