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हमारे शहर की सड़क / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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हमारे शहर की इस सड़क ने
अजगर की तरह,
अपने बेडोल शरीर से ,
नगर की कमर जकड़ रखी है,
अकाल मृत्यु की अतरंग सखी है,
हमारे शहर की यह सड़क
हमारे शहर की यह सड़क,
जिसके विश भरे फन,
जीप मेटडोर टेम्पो ट्रक ,
सभी मृत्यु के प्रयाय,
इन्हें किसी को भी डसने का हक,
लहू पिटी हाइओ, रोज जीती है, रोज मरती है,
जिंदगी से मौत की कड़ी है,
फिर भी उम्र में बड़ी है,
हमारे शहर की यह सड़क...
हमारे शहर की यह सड़क,
कभी-कभार, जब तब यहाँ वहाँ,
किसी की भी शहीदी कबाद,
तमाम विरोधों पर
लद जाती है,
अस्थाई स्मारकी गति अवरोधों से,
पर इससे फनों फुंकार में,
कोई फर्क नहीं पड़ता,
क्योकि इस शहर में कानून से कोई नहीं डरता,
ऐसा जानती है,
हमारे शहर कि यह सड़क...
हमारे शहर की यह सड़क,
अगर न होती, तो
सफेदपोश सपेरों की झोलियाँ कैसे भरती,
डंडे की बिन कैसे बजती,
चौराहे की बोलियाँ कैसे लगती,
इनको तो रोजी रोटी है ये फन,
जो सच कहे, ,लेखनी चलाए,
उस पर उठा देते है गन।
रोज बिकते है इनके इशारे पर कफन,
पर उफ तक नहीं कर पाती,
सब कुछ सह जाती है,
हमारे शहर की यह सड़के...
हमारे शहर की यह सड़के
उस रात घने अन्धकार में,
वह अपने ही किनारे खादी,
सिसकियाँ ले रही थी,
और मदहोश अन्धे वाहन चालकों को,
मिलावटखोरों, सफ़ेद पाशों को,
गालियाँ दे रही थी,
मैंने कहा ये कौन सा नया तमाशा है,
या राहगीरों के लिये कोई नया झांसा है,
उसने कहा,
कवि होकर भी ऐसे प्रश्न करते हो,
लगता है पर पीड़ा से डरते हो,
कह कर कुछ ज्यादा ही उदास हो गई,
हमारे शहर की यह सड़क,
आगे वह बोली ‘’आश’’
हमरी बात पर करोगे विश्वास ,
अब तक न जाने कितने,
भागे-अभागे,
जिनकी आ गई-बाली चढ़ गए,
दुनियाँ की आँखों से दूर हो गए,
तमाम लाशों का बोझ सह लिया,
पर इतना दुख कभी नहीं हुआ,
जब रात्री के प्रथम प्रहर में,
किसी की मधहोशी में,
प्रकृति का चितेरा चला गया,
लगा जैसे शहर का सवेरा चला गया,
वह चला गया जो सबको प्यारा था,
वह कलम असमय में टूट गई,
बादल रो उठे, ऋतुगंध उदास हुई,
ऐसा छाया अनधकार कि,
समय को शब्द न मिले,
और फिर कविता में सुबह नहीं हुई,
सब कुछ सह लिया,
पर कवि का बलिदान सहन नहीं हो पा रहा है,
लेखनी को बिलखते देख
मन इस शहर से जाने का हो रहा है,
मै भला सड़क से इस विषय पर क्या कहता,
उदास मन और बोझिल तन,
लेकर आगे बढ़ लिया,
और अपने आप से ही बहुत कुछ कह लिया,
पर दूर किसी के सिसकने की आवाज, अब भी आ रही थी,
मेरी आत्मा कह रही थी, शायद वह वही होगी,
हमारे शहर की सड़क...॥