Last modified on 13 फ़रवरी 2020, at 23:48

उस दिन / हरेराम बाजपेयी 'आश'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उस दिन तुम्हारे रूप के प्रति
नहीं
वरन्
भोलेपन पर आसक्त हो जाना
मेरी कमजोरी थी
यानी आचरण के क्षरण हेतु
रिश्वत खोरी थी।

कि खुद को भूल
तुझमें खो गया,
मेरे मन का अक्षांश
तुम्हारे तन के देशांतर से छु गया
और तुम्हारी मुस्कराहट में मुझे
मेंका कि कुटिलता सी नजर आयी
जो आदतन मुझे नहीं भायी,
क्योंकि किस्मत से मैं
कोई विश्वामित्र नहीं था,
था तो मात्र एक मानव
जिसके समक्ष हवस का दानव
झुक गया,
और इस तरह
एक और शकुंतला का जन्म
होते होते रुक गया॥