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प्रेम और घृणा / पद्मजा बाजपेयी

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घृणा के मत पौधे लगाओ, प्रेम की फसले उगाओ,
छूट रही है मानवता उसे, अमिय दे करके जिलाओ।
घृणा के...
मित्रता की सुरभि फैलाओ चतुर्दिक, द्वेष को अपने गले मत लगाओ,
पूर्व की लाली संजोकर, मिलन-सुख को फिर खिलाओ।
घृणा के...

खोलकर दिल पर्व होली का मनाओ, फूल-कांटो को, एक थाली में सजाओ,
शत्रुता को भूलकर मधुर रस में सबको डुबाओ
घृणा के मत...
रंग ऐसा हो, जो जीवन भर न छूटे, संस्कृति की गरिमा न टूटे,
आज विकृत हो रही पावन धरा पर, खून के झरने न फूटे।
घृणा के मत...
प्रेम की फसल...